Monday, October 26, 2020

तेरे प्यार का नगमा होंठों पर

◆◆तेरे प्यार का नगमा होंठो पर◆◆

  


कहते कहते रुक जाते हैं

जब पास तुम्हारे आते हैं 

और बात उलझ सी जाती है

  मेरे उलझे जज़्बातों की डोरी में
  बस दिल की दिल में रह जाती है
  जब तुमसे कुछ कहने जाते हैं
  तेरे प्यार का नगमा होठों पर
  हम धीरे धीरे गुनगुनाते हैं

  तेरी आँखें कितनी हैं गहरी
  हम डूबके ही रह जाते हैं
  तेरी बेमतलब की बातें भी
  बस यूँ ही सुनते जाते हैं lp
  तेरे प्यार का नगमा होंठों पर
  हम धीरे धीरे गुनगुनाते हैं

  क्या महसूस तुम्हें भी होता है
  मैं जो हरपल महसूस करूँ
  आसमान गुलाबी सा जो है
  ये महक भरी जो हवाएं हैं
  क्या ये बस मेरा सपना है
  या जादू सा कुछ तुम कर जाते हो 
  सब सोच के हम दिल ही दिल में
  बस यूँ ही शरमा से जाते हैं
  तेरे प्यार का नगमा होंठों पर
  हम धीरे धीरे गुनगुनाते हैं।
  ★★★
   
  प्राची मिश्रा
  


शिकायत नहीं है

◆◆ शिकायत नहीं है◆◆


मुझे नहीं है शिकायत किसी से
जो है जैसा है जितना है काफी है
मेरे हिस्से का है मिला जो मुझे
मेरी किस्मत ने जो भी दिया है मुझे
वो लोग जो करते हैं उल्फ़त मुझे
और करते हैं जो नफ़रत मुझसे
वो सब भी क़ुबूल हैं मुझको
मुझे नहीं है शिकायत किसी से

वो छत जो मेरा जहाँ बन गयी
वो माँ जो मेरा आसमां बन गयी
वो गुल्लक के चंद सिक्के अमानत मेरी
वो मैली सी चादर सुकून बन गयी
वो धुधंला सा आईना जो दीवार पर टँगा
बड़ी साफ सी सूरत दिखाता मेरी
सब कुछ बहुत है उम्दा यहाँ क्योंकि
मुझे नहीं है शिकायत किसी से

मेरी खुशियों का वो आँगन मैला सा
मेरे ग़मों का वो टूटा चबूतरा
वो साथी मेरे कुछ पक्के से
वो मटके पानी के कच्चे से
वो बारिश भी कुछ मटमैली सी
और गर्मी की रुत बड़ी रूखी सी
सब कुछ है बस मेरे लिए
क्योंकि मुझे शिकायत नहीं है किसी से।
★★★

प्राची मिश्रा


मुझे रविवार चाहिए

 ◆◆मुझे रविवार चाहिए ◆◆




मुझे भी एक रविवार चाहिए
साल में बस एक दो बार चाहिए
खो रही हूँ अपने ही भीतर कहीं मैं
ख़ुद के साथ घण्टे दो चार चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए

सरपट दौड़ती रोज़ की सुबह नहीं 
एक दिन मीठी सी भोर चाहिए
रसोई की चिंता यूँ तो कभी जाती नहीं
पर एक दिन मुझे भी अवकाश चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए 

न कपड़े न बर्तन न झाड़ू न कटका
न बच्चों का होमवर्क न पानी का मटका
एक दिन इनकी न हो कोई फ़िक्र मुझे
एक प्याली गर्म चाय बिस्तर पर चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए

सब बैठें हों जब साथ मैं किचन में न रहूँ
वो बातें वो ठहाके जो छूट गए थे कभी
वो सब एक दिन के लिए लौटा दो मुझे
आधी हँसी नहीं बेफ़िक्र मुस्कान चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए

घर के हर कोने में बसती है जान मेरी
मुझे प्यारी बहुत है ये दुनिया मेरी
शिकायत नहीं है ये है ख़्वाहिश मेरी
एक दिन मुझे भी थोड़ा आराम चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए
★★★

प्राची मिश्रा

मेघों का प्रेम


 

 ◆◆ मेघों का प्रेम ◆◆


हृदय मेघों का जब भी प्रेम में पिघल जाता है
बन के बूँद बरखा की धरा पर बरस जाता है
महक उठता है तन मन भूमि का सौंधी सी ख़ुशबू से
मधुर स्पर्श बूँदों का जब धरती के मन में होता है

प्यासी धरती के सूखे अधरों की बेचैन तड़पन को
कारे मेघों से बेहतर भला कौन जान पाता है
राह जिसकी ताकती है दिन रात ये धरती
वो निर्मोही सा घन भी तो बड़ी देरी से आता है

गरजकर तीव्र बेचैनी जब अपनी दिखाता है 
चमकती दामिनियों में तड़प अपनी सुनाता है
मिटा सन्ताप सारा धरा का कण कण भिगाता है
टूटकर अभ्र के मन से अवनि के तन में समाता है

कर श्रृंगार धरती का हरित अस्तर ओढ़ाता है
लुटाकर प्रेम अविरल नव अंकुर खिलाता है
सहती है धरती जितनी नभ के विरह की ज्वाला
वही पीड़ा वो बादल भी सहकर के आता है

नहीं होता सदा ही प्रेम में प्रेमी का मिल जाना
होता है प्रेम वो सच्चा के प्रेमी में ही मिल जाना
निभाकर प्रेम धरती से घन सदा हमको सिखाते हैं
प्रेम की पूर्ण परिभाषा स्वयं मिटकर बताते हैं
★★★

प्राची मिश्रा

तेरे प्यार का नगमा होंठों पर

◆◆तेरे प्यार का नगमा होंठो पर◆◆    कहते कहते रुक जाते हैं जब पास तुम्हारे आते हैं  और बात उलझ सी जाती है   मेरे उलझे जज़्बातों की...